खामोशियां वो शब्द है जो दिल के दायरों में छुपे होते है, इनकी अपनी आवाज़ नहीं होती। इन खामोशियों को आवाज़ हमारे अल्फ़ाज़ देते है। वो अल्फ़ाज़ जो जुबां पे तो नहीं आ पाते लेकिन दिल की कलम से पन्नों पर कैद हो जाते है। हमारे एहसास, जज़्बात और जिंदगी के छोटे बड़े लम्हें इनमें रंग भरते है और रूह बनके छलकते है, बिना इनके अल्फ़ाज़ बस शब्द बनके रह जाते है। खामोशियां अपने अपने दायरों में जीने वाले दो फराख़ दिलों के अनकहे, अनसुने और उलझे ख्यालातों को अल्फाजों में पिरोने की एक कोशिश है।