नींव क्या है? इसका वजूद क्या है? क्या महत्व है इसका? इसका अपने जीवन में क्या मायने है? देखने में तो बहुत ही छोटी चीज़ लगती है लेकिन जितनी छोटी है उतनी ही ज़रूरी भी है। इस नींव के बहुत रूप है, और सबके अपने अपने नजरिए है इसे देखने के, हमने भी एक छोटी से कोशिश की है इसे समझने की और इसे एक अपना रूप देने की।
एक घर की मज़बूती उसकी नींव ही तय करती है, बिना एक मज़बूत नींव के एक सुदृढ़ घर की कल्पना करना ही बेकार है। एक बड़ी इमारत के बनने में सबसे ज्यादा वक़्त उसकी नींव तैयार करने में लगता है क्यूंकि बिना एक मजबूत नींव के इमारत खड़ी होना ही नामुमकिन है और अगर किसी तरह खड़ी भी हो गई तो आज नहीं तो कल उसका गिरना तय ही है।
ठीक इसी तरह एक मजबूत रिश्ते के लिए उतनी ही मजबूत नींव की ज़रूरत होती है। कैसा भी रिश्ता हो अगर उसकी बुनियाद खोखली और नींव कमज़ोर है तो वो कभी एक सुनहरी सुबह नहीं देख पाती। ऐसे रिश्ते बस पूस के बादल की तरह होते है, दिखावटी, बिना पानी की एक भी बूंद के, बस वहां होने भर का एहसास कराती है लेकिन उनके पास देने को कुछ नहीं होता।
रिश्ता चाहे प्यार का हो, दोस्ती का हो, भाई बहन का हो, माता पिता से हो या किसी और से, हर रिश्ते में एहसास बराबर चाहिये, उनमें गर्माहट होनी चाहिए, उनकी बुनियाद बेहद मजबूत होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो वो बस एक औचारिकता भर रह जाती है, बस नाम होता है और एहसास वहीं सूली पे लटकी रहती है।
इसलिए ज़रूरी है रिश्तों को नाम से नहीं एहसास और भावनाओं से पहचाना जाए। शिद्दत, वफ़ादारी, सम्मान, संवेग, तरंग, ईमान ये सब एक शब्द भर बन के ना रह जाए, जरूरी है हर रिश्ते में इनके मायनों को जीना भी। रिश्तों में क्यों, क्या जैसे प्रश्नों की गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए, रिश्तों का मतलब ही होता है जिन्दगी के अनसुलझे सवालों का जवाब ढूंढना। जहां शक और सवालों की गुंजाइश आ जाती है फिर वो रिश्तों में दीवार बन जाती है और हर गुजरते लम्हों में बस सीमेंट की एक परत बढ़ती जाती है और साथ ही दूरियां भी, फिर कुछ बचता है तो बस दीवार पर रेंगती जर्जर बेलें और खामोशियां।
सवाल वहीं होते है जहां रिश्तों में ऊपर के भाव नहीं होते, और जहां एहसास, भावनाएं और ईमान होते है वह सवाल नहीं बस जवाब होते है। ऐसे रिश्ते हमें आगे बढ़ाते है, हमें जीने की नई राह दिखाते है, नए मायने सिखाते है, हमें अपनी गर्माहट से सींच कर ऊंचा उठाते हैं। इनमें इतनी ताकत होती है कि ये हमें अंधेरे रास्तों से भी खींच कर रोशनी में ला खड़ा करते है। इसलिए जरूरी हो जाता है हम इनका उसी रूप में सम्मान भी करें, अगर वो हमारे आगाज़ है तो हमारा भी कर्तव्य है की उनकी आवाज़ बनें। बस इतना भी कर दे अगर तो बस वही इन रिश्तों के लिए रूह का काम कर जाती है, और इन्हे इनकी मंज़िल मिल जाती है।
खैर इन सब बातों का सार यही है कि हम रिश्तों की आत्मीयता को समझे उनकी गहराई को जाने, और उन गहराइयों में उस रिश्ते की नींव खड़ी करे, उन्हें ईमान और सच्चाई से सींचे फिर बस उनमें यादों के और खुशियों के महल बनेंगे और मजाल जो कभी टूटने और बिखरने की नौबतें आए। और सबसे खास बात हर तरफ से एहसासों को जिंदा रखे फिर देखिए जिन्दगी के हर दुख सुख, उतार चढ़ाव में अपने आप को कभी अकेला महसूस नहीं कर पाएंगे, और हर कांटों को पार कर जिन्दगी गुलाबों सी महकती नज़र आएगी।
चलते चलते दो लफ्ज़ दोस्ती के रिश्ते के नाम।
एक घर की मज़बूती उसकी नींव ही तय करती है, बिना एक मज़बूत नींव के एक सुदृढ़ घर की कल्पना करना ही बेकार है। एक बड़ी इमारत के बनने में सबसे ज्यादा वक़्त उसकी नींव तैयार करने में लगता है क्यूंकि बिना एक मजबूत नींव के इमारत खड़ी होना ही नामुमकिन है और अगर किसी तरह खड़ी भी हो गई तो आज नहीं तो कल उसका गिरना तय ही है।
ठीक इसी तरह एक मजबूत रिश्ते के लिए उतनी ही मजबूत नींव की ज़रूरत होती है। कैसा भी रिश्ता हो अगर उसकी बुनियाद खोखली और नींव कमज़ोर है तो वो कभी एक सुनहरी सुबह नहीं देख पाती। ऐसे रिश्ते बस पूस के बादल की तरह होते है, दिखावटी, बिना पानी की एक भी बूंद के, बस वहां होने भर का एहसास कराती है लेकिन उनके पास देने को कुछ नहीं होता।
रिश्ता चाहे प्यार का हो, दोस्ती का हो, भाई बहन का हो, माता पिता से हो या किसी और से, हर रिश्ते में एहसास बराबर चाहिये, उनमें गर्माहट होनी चाहिए, उनकी बुनियाद बेहद मजबूत होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो वो बस एक औचारिकता भर रह जाती है, बस नाम होता है और एहसास वहीं सूली पे लटकी रहती है।
इसलिए ज़रूरी है रिश्तों को नाम से नहीं एहसास और भावनाओं से पहचाना जाए। शिद्दत, वफ़ादारी, सम्मान, संवेग, तरंग, ईमान ये सब एक शब्द भर बन के ना रह जाए, जरूरी है हर रिश्ते में इनके मायनों को जीना भी। रिश्तों में क्यों, क्या जैसे प्रश्नों की गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए, रिश्तों का मतलब ही होता है जिन्दगी के अनसुलझे सवालों का जवाब ढूंढना। जहां शक और सवालों की गुंजाइश आ जाती है फिर वो रिश्तों में दीवार बन जाती है और हर गुजरते लम्हों में बस सीमेंट की एक परत बढ़ती जाती है और साथ ही दूरियां भी, फिर कुछ बचता है तो बस दीवार पर रेंगती जर्जर बेलें और खामोशियां।
सवाल वहीं होते है जहां रिश्तों में ऊपर के भाव नहीं होते, और जहां एहसास, भावनाएं और ईमान होते है वह सवाल नहीं बस जवाब होते है। ऐसे रिश्ते हमें आगे बढ़ाते है, हमें जीने की नई राह दिखाते है, नए मायने सिखाते है, हमें अपनी गर्माहट से सींच कर ऊंचा उठाते हैं। इनमें इतनी ताकत होती है कि ये हमें अंधेरे रास्तों से भी खींच कर रोशनी में ला खड़ा करते है। इसलिए जरूरी हो जाता है हम इनका उसी रूप में सम्मान भी करें, अगर वो हमारे आगाज़ है तो हमारा भी कर्तव्य है की उनकी आवाज़ बनें। बस इतना भी कर दे अगर तो बस वही इन रिश्तों के लिए रूह का काम कर जाती है, और इन्हे इनकी मंज़िल मिल जाती है।
खैर इन सब बातों का सार यही है कि हम रिश्तों की आत्मीयता को समझे उनकी गहराई को जाने, और उन गहराइयों में उस रिश्ते की नींव खड़ी करे, उन्हें ईमान और सच्चाई से सींचे फिर बस उनमें यादों के और खुशियों के महल बनेंगे और मजाल जो कभी टूटने और बिखरने की नौबतें आए। और सबसे खास बात हर तरफ से एहसासों को जिंदा रखे फिर देखिए जिन्दगी के हर दुख सुख, उतार चढ़ाव में अपने आप को कभी अकेला महसूस नहीं कर पाएंगे, और हर कांटों को पार कर जिन्दगी गुलाबों सी महकती नज़र आएगी।
चलते चलते दो लफ्ज़ दोस्ती के रिश्ते के नाम।
दोस्ती में भी पूरी शिद्दत, एहसास और ईमान की नवाज़िश रहे,
वो दोस्ती ही क्या जहां ऐतिहात, शक और पर्दादारी की गुंजाइश रहे।
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