मैं कुछ नहीं, मैं कोई नहीं
आरज़ू नहीं, कोई आबरू नहीं
चमक नहीं, मैं फलक भी नहीं,
दिल नहीं, मुझमें जां भी नहीं,
साया नहीं, कोई साथी नहीं
मैं कुछ नहीं, मैं कोई नहीं।
सुबह नहीं, अब शाम नहीं
सच नहीं ना कोई जूठ नई
दिन भी वहीं रातें वहीं
सांस वहीं, पर बातें नहीं
मैं कुछ नहीं, मैं कोई नहीं।
आगाज़ नहीं, अंज़ाम नहीं
मैं शब्द नहीं कोई आवाज़ नहीं,
किस्से नहीं, कहानी नहीं
किरदार वही पर राज़ नहीं
मैं कुछ नहीं मैं कोई नहीं।
मैं गंगा नहीं, यमुना भी नहीं,
पाप वही, अब पुण्य नहीं
तीर्थ नहीं, कोई धाम नहीं
पर्वत वही, पर हिमालय नहीं
मैं कुछ नहीं, मैं कोई नहीं।
दुश्मन नहीं पर दोस्त वही,
मैं फिज़ा नहीं, रूत भी नहीं,
अपना नहीं, ना गैर सही
मंज़िल वही मैं रस्ता नहीं
मैं कुछ नहीं मैं कोई नहीं।
मैं पूरब नहीं पश्चिम नहीं
सूरज वही, मैं दिशा नहीं
मैं मिला नहीं, भटका भी नहीं
आदमी वही कोई मुखौटा नहीं
मैं कुछ नहीं, मैं कोई नहीं।
आरज़ू नहीं, कोई आबरू नहीं
चमक नहीं, मैं फलक भी नहीं,
दिल नहीं, मुझमें जां भी नहीं,
साया नहीं, कोई साथी नहीं
मैं कुछ नहीं, मैं कोई नहीं।
सुबह नहीं, अब शाम नहीं
सच नहीं ना कोई जूठ नई
दिन भी वहीं रातें वहीं
सांस वहीं, पर बातें नहीं
मैं कुछ नहीं, मैं कोई नहीं।
आगाज़ नहीं, अंज़ाम नहीं
मैं शब्द नहीं कोई आवाज़ नहीं,
किस्से नहीं, कहानी नहीं
किरदार वही पर राज़ नहीं
मैं कुछ नहीं मैं कोई नहीं।
मैं गंगा नहीं, यमुना भी नहीं,
पाप वही, अब पुण्य नहीं
तीर्थ नहीं, कोई धाम नहीं
पर्वत वही, पर हिमालय नहीं
मैं कुछ नहीं, मैं कोई नहीं।
दुश्मन नहीं पर दोस्त वही,
मैं फिज़ा नहीं, रूत भी नहीं,
अपना नहीं, ना गैर सही
मंज़िल वही मैं रस्ता नहीं
मैं कुछ नहीं मैं कोई नहीं।
मैं पूरब नहीं पश्चिम नहीं
सूरज वही, मैं दिशा नहीं
मैं मिला नहीं, भटका भी नहीं
आदमी वही कोई मुखौटा नहीं
मैं कुछ नहीं, मैं कोई नहीं।
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