जब तुम टिफिन का डब्बा पैक करके
मुझसे कहते हो घर जल्दी आना
और फिर खुद ही वो टिफिन
मेरे बैग के एक कोने में रख देती हो।
भूल जाने की मेरी आदत पुरानी है,
ये आदत भी तुम्हारी दी हुई है,
भूलने के बाद तुम्हारी डांट खाना
फिर तुम्हारे चेहरे पर वो फिक्र नजर आना
नाराज़गी में छिपा तुम्हारा वो प्रेम
मेरे मनाने पर तुम्हरा वो आंखें दिखाना
मुझे भूल जाने पर मजबूर करती है।
"सॉरी, कल से नहीं भूलूंगा"
ये सुन कर तुम मुस्कुरा देती हो,
तुम जानती हो कल फिर यही होगा
कल मैं फिर कुछ भूलूंगा
तुम फिर कल थोड़ा और प्यार
शब्दों में कैद करके मुझपर आजाद कर दोगे।
और ये सिलसिला यूंही
दिन बा दिन चलता रहेगा
उस दिन तक जब हम दोनों बैठे होंगे
एक आराम कुर्सी पर
जो हौले हौले ऊपर नीचे करेगी
हमारी यादों की लहरों पर,
और हम आंखें मूंदे देख रहे होंगे
एक दूसरे को, लहरों पर नाचते हुए
चलेंगे हाथ में हाथ थामे
एक नए सफर पर दूसरे छोर तक।
और वो टिफिन, किनारे पर फैली
मखमली रेत पर पड़े एक
संदूक के कोने में रखी होगी।
इस इंतजार में कि फिर से कोई
हम दोनों जैसा उस रेत पर
एक आशियां बनाएगा, प्रेम का
अंतरद्वंद में चल रहे जिरह का
स्नेह का, विरह का, विश्वास का
और फिर वो संदूक से निकल
पहुंच जाएगा किसी बैग के कोने में।
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