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तुम और मेरी सबसे अच्छी कविता

मैं तुम्हें अपनी सबसे अच्छी

कविता के रूप में अपनी
हाथ की रेखाओं पर
इंकित करना चाहता हूं,
वो जो कल्पनाओं से भी परे हो
जिसे आज तक किसी ने भी
नहीं गढ़ा हो
एक ऐसा काव्य जो
संवेदनाओं और संभावनाओं से
तुम्हारे और मेरे बीच बंधी
प्रेम की डोर को
सींचती हो, उनकी जड़ों को
गहराई देती हो।

वो कविता जो
मेरे अधूरे ख्वाबों को
तुम्हारे ख्वाबों से बांध कर
उन्हें संपूर्णता का बोध देती हो।
जो मेरे प्रतिबिंब को
तुम्हारे बिंब से जोड़ कर
एक आकाश को जन्म देगी,
जो हम दोनों को आशियां देगा
जहां आशा, उम्मीद और विश्वास
की ईटो को एक एक कर
जोड़ते जायेंगे हम
एक घर बनायेंगे
तुम्हारी हंसी से उसमें
रंग भर जायेंगे,
चटक रंग!
जिससे रंगने पर
हर एक दीवार गुनगुनाएगी
वही कविता जो मैं
लिखता रहूंगा रोज
थोड़ा थोड़ा,

तुम्हारी हथेलियों पर
जहां खनक रहे होंगे कंगन
तुम्हें देखते हुए।

तुम्हारी कोरी पीठ पर
अपनी उंगलियों से
एक एक शब्द कुरेदते हुए।

तुम्हारे पांवों पर
जहां पाजेब छनकते हुए
उन्हें सुरों से बांध रहे होंगे।

तुम्हारे माथे पर
अपने होठों से
जहां मेरे पूरे जीवन का
होगा सार, एक बिंदु पर केंद्रित।

तुम्हारे झुमके
जो छांव देंगे
मेरे हर सुकून के पलों को

तुम्हारी बिंदी!
जो रौशन करेगी मेरी
आत्मा के है एक कोने को
और ढूंढ लाएगी उन शब्दों को
जो छुपे हुए होंगे
दिल को कोनों में
जो उड़ेल देंगी मेरे प्रेम को
मेरी भावनाओं को,
हम दोनों की रूह पर
जिनसे लिखी जाएगी
मेरी सबसे अच्छी कविता
तुम्हारे लिए।
जिसे गढ़ते हुए बीत जायेगी
अपनी सारी उमर
और जिसे पढ़ेंगे हम दोनों
इस शून्यता से निकल
विलीन होकर ब्रह्मांड के
किसी कोने में
जहां होंगे बस तुम मैं और
शब्दों का सिरहाना।

©
















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