प्रिय पाठकगण,
हमारा सप्रेम नमस्कार। आशा करते है आप सब सकुशल और मंगल होंगे और अपनी अपनी जिंदगीओं के धूप छांव तथा हर प्रकार के लम्हों को सराहनीय तरीके से व्यतीत कर रहे होंगे।
यूं तो आजकल पत्रों का चलन नहीं रहा पर एक वक़्त था जब ये पत्र चिट्ठी ख़त और जाने किन किन नामों से बुलाए जाने वाले कागज़ के टुकड़े हमारे एहसासों, सवालातों, ख्यालातों, जज़्बातों और दिल में छुपी अनकही अनसुनी बातों को एक अल्फ़ाज़ देते थे, इन्हें एक आवाज़ देते थे एक जरिया थे इनको अपने मुकाम तक पहुंचाने का।
हम भी इन्हीं उम्मीदों के साथ एक पत्र आप सबके नाम साझा कर रहे है। एक कोशिश कर रहे है अपनी खामोशियों को एक आवाज़ की शक्ल देकर आप तक पहुंचाने की। खामोशियों की भी अपनी अलग दुनिया है अपनी अलग विडंबना है।
खामोशियां वो शब्द है जो दिल के दायरों में छुपे होते है, इनकी अपनी आवाज़ नहीं होती। इन खामोशियों को आवाज़ हमारे अल्फ़ाज़ देते है, इन्हें अपनी पहचान देते है। वो अल्फ़ाज़ जो जुबां पे तो नहीं आ पाते लेकिन दिल की कलम से पन्नों पर कैद हो जाते है। हमारे एहसास, जज़्बात और जिंदगी के छोटे बड़े, हस्ते रोते लम्हें इनमें रंग भरते है और रूह बनके छलकते है, बिना इनके अल्फ़ाज़ बस शब्द बनके रह जाते है। इन खामोशियों को अल्फ़ाज़ देना भी एक कला से कम नहीं है क्योंकि इन्हें आवाज़ देने के लिए इनके दायरों को समझना बहुत जरूरी होता है, अपने आप को इनके प्रति न्योछावर करना पड़ता है, एक शक्ल देना पड़ता है, तब कहीं जाकर इन अल्फाजों में जान आती है।
जज़्बात, एहसास यूं तो हर किसी के दिल में होते है पर इन्हें शक्ल-ओ-आवाज़ देने के लिए बार बार उन खामोशियों के दायरों से गुजरना पड़ता है, जो कई मायनों में एक सज़ा से कम नहीं पर यकीन मानिए एक बार जो आप इसमें डूब जाते है तो फिर ये मज़ा भी उतना ही देता है।
खामोशियां इन्हीं बेनाम अल्फाजों को एक आवाज़ देने की कोशिश है, अपने अपने दायरों में जीने वाले दो दिलों के अनकहे, अनसुने और उलझे ख्यालातों को अल्फाजों में पिरोने की कोशिश है। हमारे रूह से निकले ये अल्फ़ाज़ अगर आपके दिल को छू जाए और रूह में उतर जाए तो हमारी इन कोशिशों को उनका अंज़ाम मिल जाएगा। आपके दिलों में जगह मिल जाएगी तो हमें भी अपना अपना मुकाम मिल जाएगा।
आप सोच रहे होंगे या शायद पढ़ कर सोचेंगे की कहीं ये हमारी आपबीती तो नहीं। खैर इस सवाल का जवाब तो नहीं दे सकेंगे पर इतना कह सकते है कि शायद हमने जिया हो, शायद जी रहे हो या शायद आने वाले पलों मे जिएंगे, या ये भी हो सकता है कि आपमें से भी कई लोगों ने इन लम्हों को इन पलों को जिया होगा। बस यूं समझ लीजिए कि ये हर उन पलों हर उन लम्हों की आवाज़ें है। इन खामोशियों को आप अपने तरीक़े से महसूस करेंगे तो मज़ा खूब आएगा।
आशा करते है की आप इन्हें उन्हीं एहसासों से पढ़ेंगे जितने हमने इनमें भरने की कोशिश की है और इन जज्बातों को अपना बना सकेंगे।
अगर आपके दिलों में भी कुछ ऐसे जज़्बात हो तो हमसे साझा जरूर करें, हमें खुशी होगी आपके एहसासों को एक आवाज़ देकर। आपके दिलों कि आवाज़ का हमें बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।
धन्यवाद आप सभी का।
खामोशियों को शक्ल देती,
आपके और हमारे अल्फ़ाज़।
हमारा सप्रेम नमस्कार। आशा करते है आप सब सकुशल और मंगल होंगे और अपनी अपनी जिंदगीओं के धूप छांव तथा हर प्रकार के लम्हों को सराहनीय तरीके से व्यतीत कर रहे होंगे।
यूं तो आजकल पत्रों का चलन नहीं रहा पर एक वक़्त था जब ये पत्र चिट्ठी ख़त और जाने किन किन नामों से बुलाए जाने वाले कागज़ के टुकड़े हमारे एहसासों, सवालातों, ख्यालातों, जज़्बातों और दिल में छुपी अनकही अनसुनी बातों को एक अल्फ़ाज़ देते थे, इन्हें एक आवाज़ देते थे एक जरिया थे इनको अपने मुकाम तक पहुंचाने का।
हम भी इन्हीं उम्मीदों के साथ एक पत्र आप सबके नाम साझा कर रहे है। एक कोशिश कर रहे है अपनी खामोशियों को एक आवाज़ की शक्ल देकर आप तक पहुंचाने की। खामोशियों की भी अपनी अलग दुनिया है अपनी अलग विडंबना है।
खामोशियां वो शब्द है जो दिल के दायरों में छुपे होते है, इनकी अपनी आवाज़ नहीं होती। इन खामोशियों को आवाज़ हमारे अल्फ़ाज़ देते है, इन्हें अपनी पहचान देते है। वो अल्फ़ाज़ जो जुबां पे तो नहीं आ पाते लेकिन दिल की कलम से पन्नों पर कैद हो जाते है। हमारे एहसास, जज़्बात और जिंदगी के छोटे बड़े, हस्ते रोते लम्हें इनमें रंग भरते है और रूह बनके छलकते है, बिना इनके अल्फ़ाज़ बस शब्द बनके रह जाते है। इन खामोशियों को अल्फ़ाज़ देना भी एक कला से कम नहीं है क्योंकि इन्हें आवाज़ देने के लिए इनके दायरों को समझना बहुत जरूरी होता है, अपने आप को इनके प्रति न्योछावर करना पड़ता है, एक शक्ल देना पड़ता है, तब कहीं जाकर इन अल्फाजों में जान आती है।
जज़्बात, एहसास यूं तो हर किसी के दिल में होते है पर इन्हें शक्ल-ओ-आवाज़ देने के लिए बार बार उन खामोशियों के दायरों से गुजरना पड़ता है, जो कई मायनों में एक सज़ा से कम नहीं पर यकीन मानिए एक बार जो आप इसमें डूब जाते है तो फिर ये मज़ा भी उतना ही देता है।
खामोशियां इन्हीं बेनाम अल्फाजों को एक आवाज़ देने की कोशिश है, अपने अपने दायरों में जीने वाले दो दिलों के अनकहे, अनसुने और उलझे ख्यालातों को अल्फाजों में पिरोने की कोशिश है। हमारे रूह से निकले ये अल्फ़ाज़ अगर आपके दिल को छू जाए और रूह में उतर जाए तो हमारी इन कोशिशों को उनका अंज़ाम मिल जाएगा। आपके दिलों में जगह मिल जाएगी तो हमें भी अपना अपना मुकाम मिल जाएगा।
आप सोच रहे होंगे या शायद पढ़ कर सोचेंगे की कहीं ये हमारी आपबीती तो नहीं। खैर इस सवाल का जवाब तो नहीं दे सकेंगे पर इतना कह सकते है कि शायद हमने जिया हो, शायद जी रहे हो या शायद आने वाले पलों मे जिएंगे, या ये भी हो सकता है कि आपमें से भी कई लोगों ने इन लम्हों को इन पलों को जिया होगा। बस यूं समझ लीजिए कि ये हर उन पलों हर उन लम्हों की आवाज़ें है। इन खामोशियों को आप अपने तरीक़े से महसूस करेंगे तो मज़ा खूब आएगा।
आशा करते है की आप इन्हें उन्हीं एहसासों से पढ़ेंगे जितने हमने इनमें भरने की कोशिश की है और इन जज्बातों को अपना बना सकेंगे।
अगर आपके दिलों में भी कुछ ऐसे जज़्बात हो तो हमसे साझा जरूर करें, हमें खुशी होगी आपके एहसासों को एक आवाज़ देकर। आपके दिलों कि आवाज़ का हमें बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।
धन्यवाद आप सभी का।
खामोशियों को शक्ल देती,
आपके और हमारे अल्फ़ाज़।
बहूत खूब!! 👦
ReplyDelete