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Showing posts from February, 2021

कुछ कहना है तुमसे

सुनो, कुछ कहना है तुमसे क्या, कैसे, कब, नहीं पता मगर फिर भी कुछ कहना है तुमसे। शब्द नहीं है, होंठ भी कुछ कांपते से है मन भी आशंकित सा हुआ जाता है बोलना बहुत कुछ है इसे मगर कहने से डरता भी बहुत है। शायद कुछ उलझा सा हुआ है तुम्हें तुमसा देख कर ये मन, शब्दों में अथाह सागर के बीच भी अतृप्त, आवाक, विचलित रह जाता है वो डूबना चाहता है, तैरना भी पर वो सागर कदम पड़ते ही रेत हुआ जाता है क्यों, कैसे कुछ मालूम नहीं। फिर भी कुछ कहना है तुमसे, मुझे झुमके बहुत पसंद है बाज़ार से खरीदे थे, तुम्हारे लिए जेब में रखे हुए है शायद जो तुम्हें देने तो है लेकिन कैसे, कब, मालूम नहीं, डरता हूं तुमसे नहीं, अपने खुद के साए से। पर फिर सोचता हूं तुम कानों में उन्हें पहन कर जब घर से बाहर निकलोगे और कहीं मेरे सामने आ खड़े होगे और धीरे से अपने बालों को उंगलियों में लपेटकर कर शरमाते हुए कानों के पीछे करोगे, तब मैं वहीं स्तब्ध सा खड़ा होकर तुम्हें देखता रहूंगा, धड़कने थोड़ी रुक जाएंगी कुछ कहना चाहूंगा तुम्हें मगर कुछ बोल नहीं पाऊंगा। होंठ, जो पहले थोड़े कांपते से थे, अब तुम्हारे दुपट्टे क

लंच बॉक्स

जब तुम टिफिन का डब्बा पैक करके मुझसे कहते हो घर जल्दी आना और फिर खुद ही वो टिफिन मेरे बैग के एक कोने में रख देती हो। भूल जाने की मेरी आदत पुरानी है, ये आदत भी तुम्हारी दी हुई है, भूलने के बाद तुम्हारी डांट खाना फिर तुम्हारे चेहरे पर वो फिक्र नजर आना नाराज़गी में छिपा तुम्हारा वो प्रेम मेरे मनाने पर तुम्हरा वो आंखें दिखाना मुझे भूल जाने पर मजबूर करती है। "सॉरी, कल से नहीं भूलूंगा" ये सुन कर तुम मुस्कुरा देती हो, तुम जानती हो कल फिर यही होगा कल मैं फिर कुछ भूलूंगा तुम फिर कल थोड़ा और प्यार शब्दों में कैद करके मुझपर आजाद कर दोगे। और ये सिलसिला यूंही दिन बा दिन चलता रहेगा उस दिन तक जब हम दोनों बैठे होंगे एक आराम कुर्सी पर जो हौले हौले ऊपर नीचे करेगी हमारी यादों की लहरों पर, और हम आंखें मूंदे देख रहे होंगे एक दूसरे को, लहरों पर नाचते हुए चलेंगे हाथ में हाथ थामे एक नए सफर पर दूसरे छोर तक। और वो टिफिन, किनारे पर फैली मखमली रेत पर पड़े एक संदूक के कोने में रखी होगी। इस इंतजार में कि फिर से कोई हम दोनों जैसा उस रेत पर एक आशियां बनाएगा, प्रेम का अंतरद्व