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Showing posts from November, 2017

अगर कोई पूछे

अगर कोई तुमसे पूछे कौन हूं मैं कहना एक झोंका हवा का है रुख बदलने इन फिज़ाओं का जो दूर गुलिस्तां से आया है। अगर पूछे कोई तुमसे क्या हूं मैं कहना एक सिमटा लिबास है, जो ख़ामोशी की चादर में लिपटा अपने हिस्से की कहानियां बुन रहा है। अगर तुमसे कोई पूछे किस्से मेरे कहना अपने ही हालातों से टूटता बिखरता संवर के बनता हारा हुआ एक इंसान है। अगर कोई पूछ बैठे नाम मेरा कहना उसका नाम नहीं वजूद उसका उसकी कलम और आयतें उसकी पहचान है। अगर पूछे कोई क्या कर सकता हूं मैं कहना वो हर रूप इख्तियार हर काम मयस्सर कर सकता है खुशियां मुंतजर होती जिससे है। कभी कोई अगर पूछे कौन हो तुम कहना इस हयात-ए-सफर का एक हमसफ़र भर हूं राब्ता इतना ही है उससे की वो मेरे दिल को छूता है, मैं उसके कलमों में लिखी जाती हूं वो मेरी राहें बुनता है मैं उसे लड़खड़ाने से बचाती हूं शिकस्ता वो भी है, हस्सास मैं भी हूं चलना वो मुझे सिखाता है मैं जीना उसे सिखाती हूं। Like our page on Facebook

ग़ालिब की इबादत

ग़ालिब तुझे ख़ुदा मान बैठे है ये शायर भी खता खूब कर बैठे है तूने चंद बातें क्या कही दिल की तुझे ही दिल्लगी का देवता मान बैठे है दीवानगी की सौगातें क्या लिखी तूने तुझे दीवानों का मसीहा मान बैठे है इश्क़ की कलमे तूने खूब पढ़ी वाह वाही ये जमाने वाले लूट बैठे है इनायते तूने लिखी अपने इश्क़ की नाम इनपे हर आशिक़ लगा बैठे है चोट तो तूने भी खाई होगी गालिब दर्द तेरा दिल-ए-महरूम झेल बैठे है ग़ालिब तेरी बात और थी वो जमाने और थे दास्तानें और थी फ़लसफ़ा-ए-मोहब्बत की वो आफताबें और थी पर पन्नों पे इश्क़ लिखने वाले ये काफ़िर दिल में तेरी मूरत सजा बैठे है ग़ालिब तेरी इबादत खूब कर बैठे है ये शायर अब तुझे ख़ुदा मान बैठे है। Like our page on Facebook

शाम और उसकी याद

शामे मचल उठी है एक उसके ख्वाबों से दिन अभी डूबा ही है आसमां के किनारों से देखो चांद अभी निकला नहीं उसकी यादों का परवान मगर दिल में एक टीस लिए बैठा है, देखो चांद आ गया है आसमां में रात के दरिचों का दामन थामे उनका आना यूं तो मुमकिन नहीं लेकिन यादों की एक चिट्ठी भेजी है पढ़कर थोड़ी आहें भर लेना ये पैगाम भेजा है और इस चांद की ही तरह इन यादों के दामन में छुपकर ऐसे ही दरिचों के किनारे तकिए को मेरा कंधा बनाए इस रात की ख़ामोशी में खो जाना। सो जाना यूंही कि फिर हम ख्वाबों में मिलेंगे रात बाटेंगे जो दिल में तुम्हारे रह गई है उन बातों की एक चादर बनाएंगे ओढ़े उस चादर को दोनों साथ में ख्वाबों के सुनसान पड़े गलियारों को रौशन करेंगे करेंगे आबाद उन लम्हों को तुम्हारी आहों को बैचैन होती इन निग़ाहों को यूं सामने जो झिझक होती है तुम्हारी आंखों में ख्वाबों में उन पर्दों को हटा देना अपने दिल की कहना मेरे धड़कनों की सुनना जब बातों का कारवां थम जाए तो मेरी गोद में सर रख थोड़ी देर जुल्फों की छांव में बेचैनिओं को दम भरने देना बैठे रहेंगे कुछ देर यूहीं एक दूसरे का दामन था

मेरी उम्मीद मेरी इबादत

मेरी उम्मीद वहीं तक है तेरा हौसला जहां तक मुझे राह दिखाता है। मेरी सादगी वहीं तक है तेरी संजीदगी जहां तक मुझे बेपरवाह बनाती है। मेरी चमक वहीं तक है तेरी चांदनी जहां तक इसे रोशनी दिखाती है। मेरी शराफत वहीं तक है तेरी हसी जहां तक इन्हें रास्ता दिखाती है। मेरे गीत वहीं तक है तेरे लफ्ज़ जहां तक इसके सुरों को सजाते है। मेरी शायरी वहीं तक है तेरे एहसास जहां तक इन्हें अल्फ़ाज़ बनाते है। मेरी सुबहें वहीं शाम भी वहीं तक है तेरा नाम जहां तक मेरे अज़ानों में सजते है। मेरी मंजिलें भी वहीं तक है तेरा रुतबा जहां तक मुझे ऊंचाईयां दिखाता है। और मेरी इबादतें भी वहीं तक है मेरे इश्क़ की बेनाम डगर जहां तुझे ख़ुदा बनाती है। Like our page on Facebook

शायद अब मेरी जरूरत नहीं

तुम्हें शायद मेरी अब जरूरत नहीं, या शायद हो भी, किसे पता तुमसे बेहतर तो ये कोई नहीं जान सकता फिर भी तुम्हारी ख़ामोशी ना चाहते हुए भी कुछ कह सी जाती है। तुम अपने आप में खोए रहते हो मैं भी चुपचाप तुम्हें देखता रहता हूं कोशिश करता हूं कि तुम्हारी ख़ामोशी को थोड़ा जान सकूं, पढ़ सकूं, समझ सकूं पर तुम्हें देख कर ठहर सा जाता हूं सोचता हूं शायद तुम कुछ कहोगे, पर कुछ आवाज़ सी आती नहीं फिर लगता है तुम्हारा हाल ही पूछ लूं इसी बहाने कुछ बात तो होगी, शायद तुम्हारी ख़ामोशी भी समझ जाऊंगा इसी बहाने थोड़ी जान पहचान भी बढ़ जाएगी तुम मुझको समझ पाओगे मैं भी शायद तुमको जान पाऊंगा पर तुम्हारे साथ ये ख़ामोशी भी आ जाती है, दीवार की तरह फिर लगता है शायद तुम्हें जरूरत नहीं किसी की या हो भी सकता है, ये मैं नहीं कह सकता सारा दिन इसी उधेड़बुन में निकल जाता है और बात वहीं आधी अधूरी सी रह जाती है मुझे तुम्हारे कुछ कहने का इंतजार रहता है शायद तुम्हें भी रहता होगा, पर कौन जाने ये शायद भी बहुत अजीब चीज़ है इसके चक्कर में जाने कितने बिछड़ जाते है और कितने बिखर जाते है पर ये शायद वही पड़ा रहता ह

अगर तुम गलत ना समझो

अगर तुम गलत ना समझो तो एक बात कहूंगा तुम्हारे सहर को अपनी सुबह और सजर को अपनी शाम करूंगा दिल तो बचा नहीं खैर अब पर एक टुकड़ा तुम्हारे नाम करूंगा डरों नहीं तुमसे प्यार नहीं करूंगा बस तुम्हारे नाम को अपने नाम से एक अलग पहचान दूंगा हाथ नहीं थामुंगा तुम्हारा पर कदम दर कदम साथ चलूंगा तुम ठोकर खाओगे तो मैं भी गिरूंगा गिरना गलत नहीं है पर फिर उठकर मंजिल तुम्हारे नाम करूंगा अगर तुम गलत ना समझो तो एक बात कहूंगा अपनी खुशियों में से चंद तुम्हारे नाम करूंगा तुम्हारे गमों को अपने गम सा पहचान दूंगा तुम्हारी बेपरवाह मुस्कुराहट जिसे तुमने अपनी आंखों में छुपा दिया है उन्हें आजाद कर ये हसी अपने नाम करूंगा बेफिक्र रहो तुमसे इश्क़ नहीं करूंगा इकरार भी नहीं करूंगा, इज़हार भी नहीं करूंगा बस अपनी कलम से चंद आयाते तुम्हारे नाम लिखूंगा दरीचों के किनारे बैठ वक़्त बेवक्त तुमसे बात करूंगा कुछ अपनी कहूंगा कुछ तुम्हारी सुनूंगा बैठे रहेंगे एक दूसरे का दामन थामे पर तुम तुम ही रहोगे मैं भी मै ही रहूंगा इस पाक से रिश्ते को कोई नाम नहीं दूंगा अगर तुम गलत ना समझो तो फिर वही बात कहूंगा सह

मेरी चाहत और कुछ पहलू

"पहला पहलू" मेरी चाहत के हिसाब से अगर बात होती तो ये कायनात, सारी कायनात मेरे साथ होती। मेरे दिल के हिसाब से अगर बात होती तो ये जुनून, सारा जुनून मेरे साथ होता जो मेरी आंखो के हिसाब से अगर बात होती तो ये नूर, आंखो का हर नूर मेरे साथ होता मेरे हाथों के हिसाब से अगर बात होती तो ये साथ और हाथों में मेरा हाथ होता मेरे कदमों के हिसाब से अगर बात होती तो हर मंजिल, दुनिया की हर मंजिल साथ होती जो मेरे इश्क़ के हिसाब से अगर बात होती तो ये जिंदगी, सारी जिंदगी बस तेरे नाम होती "दूसरा पहलू" मगर ऐसा हो ना सका अब ये आलम है कि कायनात नहीं, जुनून नहीं आंखों का नूर भी नहीं तेरा साथ और हाथों में हाथ नहीं दुनिया की वो मंजिलें भी नहीं जिंदगी है मगर तेरे नाम की नहीं सांसें भी है मगर वो एहसास नहीं खालीपन है कुछ यहां धड़कता सा है पर दिल नहीं "तीसरा पहलू" खैर यूं एक दिन चाहत भी मेरे हिसाब की होगी, बातें भी बस मेरे नाम की होगी दिल में जो थोड़ी है जुरअतें, उनसे अपनी पहचान बना बिखरूंगी, सवरूंगी, उरूंगी भी अरमानों ने जो मिटा दी धुंध की चादरें आंखों

कौन हो तुम, कौन हूं मैं

कौन हो तुम, कौन हूं मैं एक चेहरा ही तो है एक दिल भी है शायद टूटा हुआ सा, बिखरा हुआ सा हमेशा से ऐसा नहीं था मगर तुम्हारे अपने किस्से थे मेरी अपनी कहानियां थी दिल के हिस्से अपनी अपनी निशानियां थी मौजे थी, लहरें थी समुंदर के किनारे भी थे रेत पर पांवाे के निशा बनाते तुम भी थे मैं भी था फिर कुछ लहरें तेज अाई लौटते हुए के गई अपने साथ उन पांवो के निशानों को अब किनारों पर तन्हा खड़े तुम भी थे, मैं भी था फिर तुम राह अपनी चल दिए मैं डगर अपनी ढूंढने लगा अपनी अपनी कहानियां दिलो में लिए जब अचानक टकरा गए बीच राह में एक दिन तो दिल को एहसास हुआ तुम भी वही हो मैं भी वही चेहरा भले अलग अलग है पर दिलों की दास्तां, वो किस्से कहानियां दिलों में बसी अपनी अपनी निशानियां सब वही तो है नाम अलग है पर एहसास वही है फिर भी दोनों पूछ बैठे यूहीं कौन हो तुम, कौन हूं मैं एक आवाज़ अाई एक चेहरा ही है बस अपनी बीती हुई कहानियों का और आने वाली ऊंचाइयों का पर कल जब कोई पूछ बैठेगा कौन हो तुम, कौन हूं मैं तो ये जवाब मिलेगा एक चेहरा भी है, एक नाम भी है अपनी दुनिया से अलग एक पहचान भी है

खामोशियां - एक आवाज़

खामोशियां एक आवाज़ है, खामोशियां एक अल्फ़ाज़ है खामोशियां एक साज़ है जिसकी धुन पे नाचती रात है खामोशियां एक राज़ है सन्नाटे सुनने को जिसे बेताब है खामोशियां यादों की एक बूंद है ओस से लिपटी जिसकी हर सुबह और वही अकेली शाम है। Like our page on Facebook