अगर कोई तुमसे पूछे कौन हूं मैं कहना एक झोंका हवा का है रुख बदलने इन फिज़ाओं का जो दूर गुलिस्तां से आया है। अगर पूछे कोई तुमसे क्या हूं मैं कहना एक सिमटा लिबास है, जो ख़ामोशी की चादर में लिपटा अपने हिस्से की कहानियां बुन रहा है। अगर तुमसे कोई पूछे किस्से मेरे कहना अपने ही हालातों से टूटता बिखरता संवर के बनता हारा हुआ एक इंसान है। अगर कोई पूछ बैठे नाम मेरा कहना उसका नाम नहीं वजूद उसका उसकी कलम और आयतें उसकी पहचान है। अगर पूछे कोई क्या कर सकता हूं मैं कहना वो हर रूप इख्तियार हर काम मयस्सर कर सकता है खुशियां मुंतजर होती जिससे है। कभी कोई अगर पूछे कौन हो तुम कहना इस हयात-ए-सफर का एक हमसफ़र भर हूं राब्ता इतना ही है उससे की वो मेरे दिल को छूता है, मैं उसके कलमों में लिखी जाती हूं वो मेरी राहें बुनता है मैं उसे लड़खड़ाने से बचाती हूं शिकस्ता वो भी है, हस्सास मैं भी हूं चलना वो मुझे सिखाता है मैं जीना उसे सिखाती हूं। Like our page on Facebook
खामोशियां वो शब्द है जो दिल के दायरों में छुपे होते है, इनकी अपनी आवाज़ नहीं होती। इन खामोशियों को आवाज़ हमारे अल्फ़ाज़ देते है। वो अल्फ़ाज़ जो जुबां पे तो नहीं आ पाते लेकिन दिल की कलम से पन्नों पर कैद हो जाते है। हमारे एहसास, जज़्बात और जिंदगी के छोटे बड़े लम्हें इनमें रंग भरते है और रूह बनके छलकते है, बिना इनके अल्फ़ाज़ बस शब्द बनके रह जाते है। खामोशियां अपने अपने दायरों में जीने वाले दो फराख़ दिलों के अनकहे, अनसुने और उलझे ख्यालातों को अल्फाजों में पिरोने की एक कोशिश है।